प्रतिमा के बारे में आज जब मैं सोचता हूँ तो मुझे वही एम.ए वाली
चुलबुली प्रतिमा अपने जेहन में दिखती है। एक लड़की जो मेरी खामियों को उपलब्धि और
सीमाओं को मेरी सफलता मानती है। एक लड़की जिसे मेरे कपड़ों और चेहरे से ज्यादा
मेरे विचार पसंद है। एक लड़की जिसे मुझमें वो सब पसंद है, जो खुद मुझे भी पसंद
नहीं है।
हमें मिले अब 9 साल बीत चुके हैं। मैं शादी के बाद भी प्रतिमा से वही
सवाल करता हूँ कि ‘आखिर उसने मुझमें क्या देखा।‘ और जवाब के लिये उसकी आँखों में झाँकने की कोशिश
करता हूँ। वो पलकें झपका देती है मैं किसी और दिन के लिये यह सवाल बचा कर रख लेता
हूँ।
मैं चाहता हूँ कि मैं सिर्फ प्यार की बात करुँ लेकिन इस भयावह जातिगत
समय में आप अंतर्जातीय विवाह करने के बाद केवल प्यार की बात नहीं कर सकते। मसलन
आपके सामने वो चुनौतियाँ खड़ी होंगी जिन्हें चुनौती के रूप में स्वीकार करने के
लिये आपका दिल कभी नहीं चाहेगा। आपके घरवाले, दोस्त, पड़ौसी, बिरादरी वाले, आपके सामने गतिरोधक बन खड़े होंगे। उनके अजीब से
तर्कों से आप झल्ला जाएंगे। आपको बात-बात पर इमोशनली ब्लैकमेल किया जाएगा। आप नहीं
डिगेंगे, खूब आँसू बहेंगे। “समाज क्या कहेगा। तेरे ताऊजी तो जिंदा गाड़ देंगे तुझे
जैसे धमकी भरे वाक्य धौंस के साथ सुनाए जाएंगे। आप सहते रहेंगे और कहते रहेंगे या
तो उससे शादी करुँगा या किसी से नहीं।“ पर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया मैंने अपने
पिता के सामने प्रतिमा के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा। पहला सवाल जिसकी मैं उम्मीद कर रहा था “अपनी कास्ट की है न ?” पापा ने सवाल किया। नहीं, मैंने कहा। “अग्रवालों में है?” नहीं,
मैंने जवाब दिया। फिर क्या कोई पंजाबन या पहाड़ी तो नहीं, नहीं मैंने फिर से जवाब
दिया और कहा कि मेरे साथ पढ़ती है यूनिवर्सिटी रैंक होल्डर है, यूटीए में भी मेरे
साथ थी, मुझसे कहीं ज्यादा खूबसूरत है। परिवार पढा लिखा है। बहुत मेहनती है। बिल्कुल
जैसी लड़की आप मेरे लिये ढ़ूँढ़ना चाहते हैं।
मैं उन्हें जाति के सवाल से हटाकर बाकी सारी बातों पर लाने की कोशिश
करता रहा। पर उनकी सुईं वहीं अटकी रही। “वो सब ठीक है बेटा पर
एस. सी तो नहीं है न?” हाँ, पर इससे क्या फर्क पड़ता है, मैंने कहा. “तुझे नहीं पड़ता पर तेरी बहनों की शादी पर इसका
फर्क पड़ेगा। तेरे ताऊ क्या कहेंगे। बिरादरी तेरे साथ मेरा भी बायकाट कर देगी।”
पापा मुझे आपने पाला, आपने पढाया। जब दर्द हुआ आपने मेरी आह सुनी। कोई
ताऊ या बिरादरी वाला मेरा हाल जानने नहीं आया इसलिये मुझे आपकी राय जाननी है बाकी
की राय से मुझे वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन मुझे स्वीकार करना चाहिए कि एक लड़का होने के नाते मेरा अपने पापा
का सामना करते हुए ऐसे तर्क देना तब भी आसान था। और मुझे नहीं लगता की मैंने कोई
बहुत बड़ी लड़ाई या संघर्ष अपने घर में किया हो। जितना हुआ उतने की उम्मीद मैं
पहले ही करके चल रहा था। बहनें रूठीं, फिर मान गईँ, ताऊ रूठे, वो आज भी रूठे हुए
हैं मैं भी उन्हें मनाना नहीं चाहता। ऐसे लोग रूठें ही रहें तो समाज की ज्यादा
भलाई होगी।
मुझे लगता है कि हमारे समाज में जब एक दलित लड़की किसी गैर दलित लड़के
से शादी करने के बारे में सोचती है या फैसला लेती है तब उसके शादी करने के बारे
में सोचने से पहले एक दंभित समाज उसके सामने खड़ा होता है। जब प्रतिमा ने मेरे
सामने अपने प्यार का इज़हार किया था उससे पहले एक और इज़हार एस. एम. एस के माध्यम
से किया था वो मैसेज था तरुण मैं एस. सी हूँ। उस वक्त मुझे यह बहुत अजीब लगा था पर
आज मैं प्रतिमा के उस संदेह को समझने की कोशिश करता हूँ। यह एक भयावहता है जिसे
हमारे शहर ऊपरी तौर छिपाने की कोशिश करते हैं। गाँवों में यह भयावहता ज्यादा साफ
तौर पर दिखती है। मैं जिस भयावहता की बात कर रहा हूँ वह प्रतिमा के सांदेशिक
प्रश्न में मौजूद है। मेरी पहली और शायद अंतिम चुनौती भी प्रतिमा के सामने खुद को
साबित करने की थी जिसे प्रतिमा के प्यार और विश्वास ने स्वतः खत्म कर दिया। आज
मुझे समाज से कोई गिला नहीं, हालाँकि हम दोनों शादी के बाद उन अंतरालों को नहीं भर
सके जो एक अंतर्जातीय विवाह के पश्चात पैदा होते हैं लेकिन कम से कम मुझे उन
अंतरालों को भरने की कोशिश या चाह नहीं होती है।
मुझे आज भी इस बात का अफसोस है कि मैंने प्रतिमा को पहले पसंद क्यों
नहीं किया। मैंने उसे प्रपोज़ क्यों नहीं किया। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ तुम
मेरी साँसें हो, मैं फिर वहीं पंक्तियाँ कहूँगा jo शादी से पहले कही थी..
तुम्हारे पास रहता हूँ।
तो मैं कुछ खास रहता हूँ।।
नहीं तो बिन तुम्हारे मैं
बहुत उदास रहता हूँ।।
सुना है रोज़ रहता है
जमाने भर का डर तुमको
तुम्हारे साथ रहता हूँ,
तो मैं आज़ाद रहता हूँ।।
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