प्रार्थना : गुरु कबीरदास के लिए
परम गुरु
दो तो ऐसी विनम्रता दो
कि अंतहीन सहानुभूति की वाणी बोल सकूँ
और यह अंतहीन सहानुभूति
पाखंड न लगे ।
दो तो ऐसा कलेजा दो
कि अपमान, महत्वाकांक्षा और
भूख की गांठों में मरोड़े हुए
उन लोगों का माथा सहला सकूं
और इसका डर न लगे
कि कोई हाथ ही काट खायेगा ।
दो तो
ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिन्ता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा ।
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ ।
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यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ ।"
साही की इस शानदार कविता के लिये धन्यवाद ।
आभार पढ़वाने का.
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