गुरुवार, 30 जुलाई 2009

तुम्हें क्या लगा...

तुम्हे क्चा लगा
मैं तुम्हे भूल जाउँगा
नहीं
ये मेरे बस में नहीं
होता
तो कोशिश ज़रूर करता
लेकिन
तुम मुझे याद हो
मेरी सबसे फेवरेट किताब के
उस पन्ने की तरह
जिसे मैंने ही
याद रखने के लिये
किनारे से
थोड़ा सा
मोड़ा था
और मोड़ा भी ऐसा पुख्ता
कि
मैं
खुद भी
इसे दोबारा खोल नहीं पाया हूँ
अब तक
सच कहूँ
तो मैं ...............
तो मैं ...............
चलो छोड़ो
फिर कभी............ । ।