गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बतूता का जूता - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

इब्नबतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में


कभी नाक को, कभी कान को
मलते इब्नबतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता


उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्नबतूता खड़े रह गये
मोची की दुकान में।
सन्दर्भ:- कविता-कोश (www.kavitakosh.org)
गुलज़ार का लिखा 'इश्किया' का गीत 'इब्न-बतूता...जूता...' सर्वेश्वर की कविता का समकालीन संस्करण जान पड़ता है...

रविवार, 24 जनवरी 2010

चुप्पी एक विचार है ओर विचारों की हत्या नहीं होती....

ये तस्वीरें गवाह हैं उस गुनाह की दास्ताँ की जो आजकल कैम्पस(आर्ट फैकल्टी, दिल्ली विश्वविद्यालय) में विद्यार्थी परिषद् द्वारा लिखी जा रही है, वाकई वो डरते हैं हमारे चुप रहने से भी; क्योंकि चुप्पी एक विचार है और विचारों की हत्या नहीं होती..., ज्यादा लिखना ज्यादा बोलना है और जब चुप्पी एक कारगर हथियार हो तो बोलना उनलोगों के साथ कन्धा मिलाना होगा जो जन-विरोधी कारनामों को अंजाम दे रहे हैं. ये चुप्पी एक लम्बे वाक-संघर्ष से उपजी है जो ज्यादा खतरनाक साबित होगी इन संस्कृति के ठेकेदारों के खिलाफ . इसलिए साथियों तस्वीरें गवाह हैं...हमारी एकजुटता की, ये गवाह है हमारे साहस की, हमारे मनोबल की, ये गवाह है उनकी कमजोरियों की, उनकी बौख्लाहटों की ....
(बीते दिनों, विद्यार्थी परिषद् के लोगों ने आर्ट फैकल्टी में जनचेतना की पुस्तक प्रदर्शनी पर हमला बोल दिया था, और उनकी गाड़ी को खासा नुक्सान पहुंचाया था, इतना ही नहीं चोरी पर सीनाजोरी यह क़ि अगले दिन पुलिस के सामने जनचेतना के कार्यकर्ताओं के साथ 'देश के गद्दारों को गोली मारों सालो को' जैसी भाषा का प्रयोग कर अपने मंसूबे साफ़ कर दिए थे, इसके बाद वहाँ से एहतियात के तौर पर या किसी और वजह से जनचेतना की गाडी को हटा दिया गया क्योंकि इतनी कुव्वत तो पुलिस-प्रशासन में थी नहीं की ए.बी.वी.पी. के खिलाफ कोई एक्शन वह लेती, सो जनचेतना क़ी गाडी को हटाना ही उसने बेहतर समझा.) वाकई समाज बेहतरी की और बढ़ रहा है...