रविवार, 10 अगस्त 2008

किस्सागोई के किंग

पिछले सन्डे को जे.एन .यू जाना हुआ । मैच जो था जे.एन.यू और डी.यू के बीच। मैच का रिजल्ट जो रहा हो लेकिन मज़ा खूब आया। ये और बात है कि फील्डिंग ने कुछ दिनों से पूरा शरीर तोड़ के रख दिया है। मांसपेशियों में अभी भी दर्द है । तब भी इन सबसे से अलग जो बात रही , वो थी किस्सागोई की ।
हम सब लोग मैच के तुंरत बाद एक ढाबे पर आए और उसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ उसने हमें शाम ७ बजे तक बांधे रखा । साऊथ कैम्पस के लड़के अरविन्द ने जिससे मेरी मुलाक़ात शायद पहली बार ही हुई थी ने ऐसा समां बाँधा कि कम से कम उस समय तो मैच की सारी थकान उतर गई ।
उस बन्दे के वो किस्से (जिसमे कुछ नॉन- वेज भी थे) जिसकी सबसे दिलचस्प बात थी उसकी दास्तानगोई यानि उसके बयां करने का स्टाइल । जो इतना उम्दा था कि उन किस्स्सो को सुनने के दौरान मुझे यक-ब-यक सूरज का सातवाँ घोड़ा के माणिक मुल्ला की याद हो आई । हालांकि माणिक मुल्ला के किस्से और इन जनाब की मजाकिया किस्सागोई में भारी विषयांतर था लेकिन दोनों में एक कॉमन बात थी । दोनों में ज़बरदस्त कौतुहल था ,रोचकता थी और थी अपने सुनने वालो को बांधे रखने की क्षमता । यह इतनी ज़बरदस्त थी कि सब लड़को का ग्रुप उस बन्दे की बाते सुनता जाता और हँस-हँस कर लोट-पोट होता जाता ।
रोमेंटिक कविता के बारे में ये बात कही जा सकती है कि ----
" कविता यों ही बन जाती है बिना बताये
क्योंकि ह्रदय में तड़प रही है याद तुम्हारी । "
लेकिन जब किस्सों की बात आती है तो किस्सा यों ही नही बनता वह तो गढा जाता है वह एक माहौल चाहता है और एक माहौल बनाता है। यह बात कहते वक़्त नई कहानी का ख्याल हो आता है उसकी सबसे बड़ी खासियत भी यही थी कि वह एक माहौल की डिमांड करती थी । अरविन्द बाबू की किस्सागोई (जिसका मै कोई उद्धरण नही दे रहा हूँ ) माहौल बनाने के इन्ही संदर्भो में याद आती है । जो अपने सुनने वालो का सिर्फ़ मनोरंजन ही नही कर रही थी बल्कि इस बात का भी एहसास करा रही थी कि किस्से किस तरह से कथाओ से निकल कर चुटकुलों में आ गए है । इन साहब में बन्दों को बाँधने की ही क्षमता मात्र नही थी बल्कि ये झूट भी इस ढंग से कहने की कला रखते थे कि वह भी सच जान पड़ता था गाइड के नाम पर मेरा जो मजाक बनाया गया था वह अब लगभग सच सा हो गया है । खैर जो भी है उस बन्दे की इस किस्सागोई ने समय की बर्बादी की चिंता से हमें कोसो दूर रखा । मै तो उसका मुरीद बन गया हूँ ऐसे बन्दे अपने आस पास रहे तो रिश्तो की चुभन का और जिंदगी की घुटन का एहसास कम से कम कुछ पल के लिए तो हमसे दूर रहता है ।

5 टिप्‍पणियां:

Nitish Raj ने कहा…

तरुण, मुनीरका की हमारी याद ताजा करवा दी। धन्यवाद और बधाई।
http://nitishraj30.blogspot.com
http://poemofsoul.blogspot.com

बालकिशन ने कहा…

एक - आध हलके- फुल्के उदहारण भी देते तो अच्छा लगता.
खैर बहुत अच्छी पोस्ट लगी.

मुन्ना कुमार पाण्डेय ने कहा…

kamaal ke guru...lekin meri performance ke baare mein nahi likha tune ...koi nahi mann maar ke arvind ko hi yaad karke hans raha hu..
achchi post

तरुण गुप्ता ने कहा…

munnu teri performance hamesha laajawab rehti hai.tum us match me akele aise bande the jo na kewal run mar raha tha balki pitwa bhi raha tha. tum na hote to shayad wo match ham khel hee na paate jeetna ya harna to door kee baat thi.khair abhi ke liye itni hee tareef sweekaro guru ...next match bhi jaldi decide karna wo get-together mujhe hamesha yaad rahega.

प्रतिमा ने कहा…

post achchhi lagi padh k hame bhi maza aaya.