इस वर्ष सातवी कक्षा तक के वे छात्र जो फेल हो गए थे दिल्ली सरकार के फरमान अनुसार पास कर दिए गए ज़ाहिर है बच्चो के चेहरे खिल उठे ,उनकी खुशी का ठिकाना न रहा , वे बेहद खुश थे । क्योकि उन्हें अपने आज से मतलब है कल से नही। वे आज में जीना चाहते है । लेकिन उनके अभिभावक ,अध्यापक और दिल्ली सरकार को सिर्फ़ आज से ही नही बल्कि इन बच्चो के भविष्य यानी कल से भी मतलब होना चाहिए । बच्चो को पास करने का फ़ैसला किनके परामर्श से किया गया या क्यो किया गया इसका तो मुझे इल्म नही लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि इससे छात्रो के भविष्य को किसी तरह कि नई दिशा नही मिल सकेगी ।
बच्चो को प्रोमोट करना अलग बात है और उन्हें सीधे पास कर देना अलग । ऐसा फ़ैसला देते वक्त हमें इस बात का ख़याल रखना होगा कि पहले ही बच्चो को छठी और सातवी कक्षा में प्रमोट के तौर पर २० से ३० नंबर की छूट दी जाती है इसके बाद भी अगर बच्चा फेल हो जाता है तो इसकी ज़िम्मेदारी उसके माता-पिता , अध्यापक , और ख़ुद उसकी बनती है । लेकिन इसका हल बिना कोई नीति तय किए बच्चो पर दया-दृष्टि कर उन्हें पास कर देना नही है बल्कि इसकी जगह यदि दिल्ली सरकार अपने विद्यालयों की , शिक्षा प्रणाली की दशा पर ध्यान देती तो हमें ज़्यादा खुशी मिलती । सरकार के वर्तमान फैसले का परिणाम यह हुआ है कि वे छात्र जिन्हें अपना पढ़ना , लिखना,यहाँ तक कि जोड़ - घटा के सवाल तक नही आते उनका सामना अब अगली कक्षा में वर्गमूल,घनमूल, से कराया जा रहा है। ये वे छात्र है जो एक - दो विषयो में ४-६ अंको से फेल नही हुए थे कि इन्हे प्रोमोटेड पास कर दिया जाता बल्कि ये वे बच्चे है जो पाँच-पाँच विषयो में १५-२० अंक भी नही ला सके । हमारा सवाल ये है कि क्या इन्हे अगली कक्षा में भेजने से बेहतर ये न होता कि इन्हे उसी कक्षा में रख कर अच्छी सिक्षा दी जाए ताकि ये अपने साथियो कि तरह सफल होने के लिए मेहनत करे इन्हे सरकार कि दया का मोहताज न होना पड़े ।
फेल करना कोई सज़ा नही है बल्कि बच्चे में यह एहसास जगाना है कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए मेहनत करनी होगी पास मेंहनत का ही फल है जो बच्चे को प्रोत्साहित करता है अधिक मेहनत करने के लिए ,एक्साम में मिलने वाले अंक उस उत्साह को बनाये रखते है जो बच्चो में सांस्कृतिक प्रतियोगिता को बनाये रखता है । सरकार का इस सम्बन्ध में कहना है कि इससे बच्चे प्रोत्साहित होंगे ----लेकिन क्या इनसे उन बच्चो का उत्साह नही गिरेगा जो परीक्षा में सफल होने के लिए जी तोड़ मेहनत करते है । क्या बच्चो में ये भावना नही जागेगी कि मेहनत करने कि क्या ज़रूरत है पास तो कर ही दिए जायेंगे ?इस तरह की भावना बच्चो में प्रोत्साहन नही बल्कि पतानोंमुखता पैदा करेगी और सरकार का बच्चो कि भलाई के लिए उठाया गया क़दम उनके लिए सबसे बड़ा रोड़ा साबित होगा ।
इन सब बातो का आधार मात्र मेरी सोच नही है बल्कि वो अनुभव है जो मैंने छोटे बच्चो को पढाते वक्त महसूस किया है । फेल होने की तीस क्या होती है और उसकी प्रतिक्रिया कैसी होती है इसे भी मैंने महसूस किया है ।
इस मुद्दे को उठाना बेहद ज़रूरी इसलिए लगा क्योकि दिल्ली में शिक्षा के लिए काफी फंड और आर्थिक सहायता आदि दी जा रही है और दिल्ली की सरकारी और सस्ती शिक्षा निरंतर विकासोन्मुख है ऐसे में सरकार का एक भी ग़लत क़दम हेमू कि आँख में तीर साबित हो सकता है इस तरह के फैसले लेने से पहले शिक्षाविदों ,बाल मनोचिकित्सकों ,अध्यापको,अभिभावकों आदि के साथ विचार विमर्श ज़रूर कर लेना चाहिए और हो सके तो इनमे छोटे बच्चो कि भी राये ली जानी चाहिए। अन्यथा ये सारी दया बेमानी होगी जबकि हम सभी चाहते है कि ये बच्चे आने वाले भारत की नई तस्वीर पेश करे ।
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