तुम्हारे बारे में क्या कहूं मै, मेरी तमन्नाओं का सिला है. नहीं मिला जो तो मुझको क्या है, मिलेगा तुमको ये आसरा है.
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
मेरी दिल्ली मै ही सवारूँ
अब तक हम सुनते आए थे कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों की हालत बहुत बदतर है लेकिन ये खबर शायद आपके चेहरे पर कुछ देर के लिए खुशी ला पाए कि इन स्कूलों को अब हाइटैक करने की तर्ज़ पर इनमें कैमरे लगने शुरू हो गए है सरकार को लगता है कि स्कूलो में कैमरे लगाने ,ए. सी. ,और कम्प्यूटर प्रोवाइड कराने मा़ञ से वह स्कूलों को हाइ़टैक बना सकती है । चाहे वहाँ बुनियादी सुविधाओ का अभाव हो। खेलने के लिए समतल मैदान न हो , टॉयलेट की सफाई का उचित प्रबंध न हो,यहाँ तक की पीने के पानी की भी समूचित व्यवस्था न हो लेकिन कैमरे ज़रूरी हैं उनके बिना स्कूल में अनुशासन क़ायम करने में काफी मशक्कत जो करनी होगी । क्या दिल्ली के सरकारी स्कूलो में जहाँ स्कूल की बिल्डिंग तक काफी जर्जर हालत में हो ,ऐसे में कैमरो की व्यवस्था की ज़रूरत क्यों आन पड़ी होगी इसका जवाब सरकारी तंञ अच्छे से जानता है । क्या वह इसका खुलासा लोगों के सामने कर सकता है ?क्या इन स्कूलो को हाइटैक बनाने से पहले हमें एक स्कूल की बुनियादी सुविधाओ का ख्याल नही रखना चाहिए ?क्या इस तरह की चीज़ों पर पैसा खर्च करने से बेहतर ये न होगा कि हम पहले इन स्कूलो की वास्तविक स्थिति को जाने - समझे और फिर कोई फैसला लें ताकि बाद में हमें अपने ही फैसले पर पछताना न पड़े ?जिन स्कूलो के प्ले ग्राउंड में पैसे की किल्लत का हवाला देते हुए घास तक नही लगाई जा सकी है ,जहाँ के टॉयलेट गंदगी की मार झेल रहे है वहाँ कैमरे लगवाना बेमानी क्या जान पड़ता है ?मैं जहाँ रहता हूँ(नन्द नगरी) वो एरिया दिल्ली में कोई खास इज़्ज़त से नही देखा जाता । अब ये बताने की ज़रूरत तो बिल्कुल नहीं, कि यह जमना पार में पड़ता है । हमारे यहाँ पढाई की हालत बेहद खस्ता है ।यहाँ पढने वाले बच्चों में से अधिकतर स्कूल के पास ही के सिनेमा हॉल (गगन सिनेमा)में तफरी करते हुए देखे जा सकते हैं । यहाँ तक कि इस स्कूल की पहचान भी गगन वाले स्कूल के नाम से की जाती है ।यहाँ पढने वाले किसी बच्चे से पूछकर देखिए कि वह कहाँ पढता है उसका जवाब सर्वोदय बाल विद्यालय,नन्द नगरी नही होगा बल्कि वह कहेगा गगन वाले स्कूल में । क्या यह आपका ध्यान आइडेंटिटि पोलिटिक्स की ओर नही खीचता जिसे बुद्घिजीवी आइडेंटिटि पॉलिटिक्स का नाम देते हैं । खैर क्लास रूम्स की हालत ये है कि दीवारों में गड्ढे हो चुके हैं,पंखो की मौजूदगी प्रिंसीपल के ऑफिस ,साइंस लैब,और लाइब्रेरी तक ही सीमित है क्लास रूम्स इनसे अब तक मेहरूम है ,बिजली का आलम ये है कि शाम ढलते-ढलते पूरी बिल्डिंग को अंधेरा अपने आगो़श में ले लेता है । लेकिन वहाँ कैमरे लग गए है जो बच्चों के लिए खेल की और आस-पास के पियक्कड़ो व स्मैकियों के लिए चुराने का और चोर बाज़ार में बिकने का ताज़ा माल साबित होंगे ऐसी मेरी आशंका है ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
kya kahe sab bhagvaan bharose hai is desh me ....ab to ye supreme court bhi maan chuka hai....
प्रभावी आलेख!!
अजी पुराना ओर सडा माल भी तो इन लोगो ने किसी बहाने अपने अपने घरो से बदलना हे, अब यह केमरे ओर ऎ सी काम करे या ना करे, लेकिन नाम ओर दाम दोनो तो इन्हो की जेब मे ही जाये गा ना.
धन्यवाद सच्ची बात कहने के लिये
तुम्हारी चिंता जायज है,मित्र.......
आपकी चिंता जायज है। आपने सही दृष्टिकोण से चीजों को परखा।
(मित्र, एक आग्रह है, अगर अपना प्रोफाइल हिन्दी में लिख दें तो पढ़ने में लोगों को सहूलियत होगी।)
बेटा जल्दी से नई पोस्ट डाल......कुछ नया ताजा माल
एक टिप्पणी भेजें