गुरुवार, 4 सितंबर 2008

कोसी का कहर और ........................

पिछले दिनों यमुना उफान पर थी अभी भी है पर उतनी नही , जितनी कोसी । कोसी ने तो उफान की भी हदें तोड़ दी हैं , न सिर्फ उफान की बल्कि किसान की , मज़दूर की , आवाम के विश्वास की हदों के साथ-साथ जडे़ तक उखाड़ दी हैं जिसकी खबर न सिर्फ प्रिंट मीडिया बल्कि और तरह के तथाकथित मीडिया भी दे रहे हैं जिनमें से एक तरह के मीडिया हैं हमारे ब्लॉगर्स । पिछले दिनों मनोज वाजपेयी ने शक्तिहीन अभिनेता और बाढ़ का दर्द शीर्षक से अपने ब्लॉग पर एक अभिनेता होने पर भी अपनी कोसी के बाढ़ पीड़ितो के लिए अब तक कुछ ना कर पाने के कारण अपनी शक्तिहीनता दिखाई थी । इस पोस्ट में उन्होंने कहा - बिहार में बाढ़ है लेकिन वो एक अभिनेता होने के बावजूद कुछ कर नही पा रहे । लेकिन साथ ही अपनी पोस्ट की एन्डिंग में उन्होंने करने का संकेत देते हुए लिखा कि वे इस सिलसिले में शेखर सुमन और प्रकाश झा से मिलने जा रहें हैं। इस वाक्य के साथ उनकी पोस्ट समाप्त हुई और शुरु हुई टिप्पणियाँ आनी ........ इन टिप्पणियों ने मेरा ध्यान खींचा कुछ को छोड़कर लगभग सब में बाढ़ का दर्द ग़ायब था जो चीज़ उपस्थित थी वो थी मनोज जी के अभिनेता होने के बावजूद अपनी जड़ो को याद रखने के लिए की गई उनकी प्रशंसा ।उन अधिकतर टिप्पणीकारों में शायद यह पूर्वाग्रह था कि अभिनय हमें अपनी जड़ो से काट देता है । क्या सचमुच जड़ो से कटकर हम अभिनय कर पाएंगे ? यह एक सवाल था जो मनोज जी की पोस्ट को पढ़कर नही , उसपर आई टिप्पणियों को पढ़कर मेरे दिमाग़ में आया ।आज सुबह जब विनीत जी का गाहे-बगाहे खोला तो वहाँ भी कोसी का क़हर बरपा हुआ था , सोच तो मैं भी रहा था कि यूनिवर्सीटी हॉस्टल और आपस की छोटी-छोटी बातों को अपने ब्लॉग का रॉ-मैटेरियल बनाने वाले विनीत जी ने अभी तक अपने ब्लॉग पर देश की इतनी बड़ी आपदा पर क्यों नही लिखा ? समझ नहीं आ रहा था कि वह अब तक जनसत्ता की छोटी-छोटी खामियाँ निकालने में ही क्यों व्यस्त हैं जबकि कोसी के क़हर के संदर्भ में वह ज़ी-न्यूज़ , आई.बी.एन.७ ,स्टार न्यूज़ की लंबी-चौड़ी खाइयाँ खोज सकते हैं । खैर जो भी है आज उनका ब्लॉग देखकर सुकून मिला , लगा उनकी पारखी नज़र देर से ही सही दुरुस्ती के साथ मीडिया के खिलाफ हल्ला बोल रही है ।

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सही में कोई सोंचकर भी तत्काल कुछ मेहनत नहीं कर सकता।

तरुण गुप्ता ने कहा…

देखिये ऐसा नही कि हम कुछ नही कर सकते , ऐसा कहना उन लोगो के कामों को भी शंका से देखना है जो इस संकट की घड़ी में आगे आए है ।