गुरुवार, 22 जुलाई 2010

ज्यादा दिन नहीं बीते हैं..

जब दो युगल बैठे थे
पेड़ की आड़ लिए
तुमने फुसफुसाया था कानो में
पेड़ कट गया था अगले ही पल

तिमारपुर के केस को बीते
ज्यादा वक़्त नहीं गुज़रा है अभी
पाले बदलते रहते हैं बस
प्यार पर बंदिशें लगती रहती हैं बस

प्रेमियों को डरना पड़ता है
'डर के आगे जीत है' जैसे वाक्य तो अब सुनने को मिलने लगें हैं
वर्ना तो दुनिया '...प्यार किया तो डरना क्या' जैसे एक गीत के सहारे ही
दीवारों में चुन जाने के लिए तैयार रहती थी

ज्यादा दिन नहीं बीते हैं..

तुम्हारे मोहल्ले में कई कुत्ते पीछे लग गए थे
रीना के, याद होगा तुम्हे
तुम भी तो उनके साथ थे
रीना ने जींस क्या पहन ली थी
तुम्हे तो सूंघने का मौका मिल गया था
तुम सबने मिलकर गोश्त चूसा था
चटखारे लिए थे इस समाज ने

रीना ने पहल की थी
तुमने दबा दी थी
''मोडर्न हुआ चाहती थी साली''
कानो में अब भी गुंजायमान है मोहल्ले के

तुम और तुम्हारे साथी
फिकरे कसते हों युगलों पर
छेड़ते हो लड़कियों को
बंदिशें लगाते हो प्रेम पर
तमाचे मारते हो लोकतंत्र पर
लानत देते हो सरकार की कारगुजारियों पर

कभी पूछा है अपने घर की औरतों से
तुमने,
वो क्या चाहती हैं ?

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहन रचना एवं कठोर प्रश्न उठाती रचना.