गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

स्मृति में प्रेम

कॉलेज का विदाई समारोह। क्या मेरे प्यार का भी आज आखिरी दिन है? उसके मन में यही सवाल था उस दिन। उसकी नज़रे उसे खोज रहीं थी पर वो जैसे कहीं नहीं थी वह फिर कैंटीन की छत से कॉलेज के कॉरिडोर की और भागा पर उसे वहाँ भी नहीं पाया। उसकी सहेली ने बताया कि वो कॉमन रूम में तैयार हो रही है। वह इंतजार करने लगा। फिर वह बाहर निकली साड़ी का रंग नहीं बता सकता बहुत डिफ्रेंट थी बिल्कुल उसकी आँखों की तरह। दुनिया में ऐसी आँखें किसी की नहीं थी। वो ऐसा मानता था। वह उसके सामने से गुज़र गयी। वह कुछ बोल नहीं पाया। उसके साथी खुश थे। पर क्या था जो उसके मन में चल रहा था? वह फिर उसे खोजने लगा। कॉलेज के पिछले तीन सालों में वह इतना कभी खाली नहीं हुआ जितना कि आज। उसे लगा कि दिल से कोई द्रव्य निकल रहा है उसने दिल पर हाथ रखा पर कुछ नहीं निकल रहा था वहाँ कुछ तेजी से बज सा रहा था। वह कैंटीन की छत पर गया उसने देखा कि वह रुपेश के साथ फोटो खिचवा रही थी वह बहुत खुश थी रुपेश हमारी क्लास का सबसे डैशिंग लड़का था। उस दिन उसे पहली बार लगा कि वह बेहद बदसूरत है। उसे लगा कि उसकी माँ को बचपन में उसके माथे पर काजल नहीं लगाना चाहिए था उसे पहली बार माँ से इतनी शिकायत हुई। (संगम में हमें शामिल करने के लिए एम.ए. के विद्यार्थियों को आभार और शुभकामनाओं सहित उपरोक्त लघु कथा, शीर्षक है

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