बुधवार, 2 सितंबर 2009

कुछ उद्धरण और, मलयज की डायरी(भाग-१)से

०४जनवरी,५८
किसी पुस्तक की समीक्षा के क्या मानी होते हैं? क्या पुस्तक-समीक्षक शुरु से ही यह मानकर चलता है कि वह एक ऐसे स्तर पर है जहाँ से वह अपनी मान्यताओं द्वारा संचालित पुस्तक पर निर्णय दे या उस पर विचार करे ?.....मुझे लगता है कि आजकल पुस्तक-समीक्षा के नाम पर प्राय यही होता है यानी समीक्षक अपने को एक उच्च दर्जे पर समझता है। लेकिन मेरे विचार से यह गलत दृष्टिकोण है। पुस्तक-समीक्षा के यह मानी होने चाहिए कि समीक्षक कृतिकार के साथ मिलकर कृति के आंतरिक मूल्य और उन मूल्यों की ओर इंगित करने वाली दिशा का अध्ययन करे। इस तरह से रचना के विकास की संभावनाओं पे ठोस रूप से विचार किया जा सकता है।.......


०२मार्च,५७
काव्य व्यक्तित्व तीन प्रकार के होते हैं।
पहला वह जो बदलते युग के मानव-मूल्यों से अपने विकास की संगति बिठा लेता है। उसमे सतत जागरूकता की एक सहज शक्ति होती है जो उसे रूढ़ होने नहीं देती, उसमे आगे और आगे विकसित होने के लिए विस्फोट होते हैं। दूसरे वह जो सम्पूर्ण रूप में अपने को आगे ले चलने में अशक्य होते हैं। वो उन विकसित मूल्यों, संदर्भो के प्रति जागरूक होते हुए भी,उसे अस्वीकार न करते हुए भी, उसे अपना निजीपन-अपना अतीत-दान नहीं कर पाते। तीसरे वे होते हैं जो अपने समय के आगे कभी नहीं बढ़ते, रुद्ध होते हैं और आजीवन उसे ही गौरवांवित करते रहते हैं।(किसी भी काल में एकाध ही में तीनों प्रकार के व्यक्तित्व मिलते हैं।)


१८मई,५७
मुझे लगता है कि आज के ईमानदार लेखक का लेखन-कार्य बहुत कुछ एक परवशता , एक कम्पलसन की स्थिति में हो रहा है। प्राचीन काल के लेखकों कि तरह लेखन के प्रति पूर्ण रूप से आत्यांतिक वह नहीं बन सकता। उसकी रचना प्रक्रिया में ही जैसे अन्तर्विरोध, प्रेशर और लाचारी के तत्व सम्मिलित हैं जो सिर्फ उसे बीती पीढ़ी के लेखकों से अलग करते हैं। वरन् उसके सामने कला की अभिव्यक्ति का एक विराट प्रदेश भी खोलते हैं।.........


१८अक्टूबर,५९
कविता पढ़ो तो कवि की हैसियत से नहीं, एक साधारण पाठक की तरह, यानी न आलोचक की तरह न कवि की तरह।कविता लिखो, लेकिन कवि की तरह नहीं। कविता बस आदमी की भाषा हो और कुछ नहीं। इससे ज्यादा की कोशिश कविता में आदमी को कवि बना देती है और कविता को जीवनहीन।......

१९अगस्त,६०
कल नामवर जी से बात करते-करते हफ्तों पहले कही उनकी एक बात याद आती है(शमशेर जी से) मैं कवि को केवल अपना हृदय दे सकता हूँ, अपनी सहानुभूति नहीं। नोट, बाद में विचार करने पर --यह दृष्टिकोण एक इन्टेग्रेटेड पर्सनेलेटी वाला व्यक्ति ही रख सकता है।

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