मंगलवार, 29 सितंबर 2009

अहमद फ़राज़ की बेहतरीन ग़ज़ल

ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा

आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा

वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा


इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी

तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा


तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे

और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा


ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला

तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा


डूबते डूबते कश्ती तो ओछाला दे दूँ

मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा


ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"

ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा

3 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगाnice

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बेहतरीन गजल . बधाई प्रस्तुति के लिए

Udan Tashtari ने कहा…

फराज़ साहब को पढ़कर आनन्द आ गया.