बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

बी.आर.टी से बेहतर तो यही होगा की आप लोगों को सहूलियत दें ताकि लोग ख़ुद अपना निजी वाहन छोड़कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करें ...जैसी मेट्रो ने दी है.

खबर आई है कि शास्त्री पार्क से करावल नगर के बीच बी।आर।टी कोरिडोर का निर्माण किया जायेगा। बी.आर.टी कोरिडोर के सिलसिले में पहले ही अपनी फजीहत करवा चुकी शीला सरकार और बी.आर।टी के पहले और दूसरे चरण से भी सीख न लेते हुए सरकार का यह फैसला हमारी समझ से बाहर है. समझ नहीं आता कि कॉमन वेल्थ गेम्स कि हड़बड़ी में ये फैसले लिए जा रहे है या किसी खास तबके को इसका लाभ देने के लिए या फिर सिर्फ अपनी झोली भरने के लिए चूँकि हमें अभी तक भी इसका कोई फायदा नज़र आता नहीं दिख रहा है ये अच्छी बात है कि सरकार वाहनों को लेन में चलाना चाहती है पर ये बात समझ में नहीं आती कि ६०-७० फीट कि सड़क में वो कितनी लेन बना पायेगी क्या ये बात किसी भी लिहाज़ से ठीक मानी जा सकती है कि एक लेन पर तो जाम लगा हो और दूसरी लेने खाली हों? हम अभी भी ये नहीं कह रहे है कि सरकार कि सोच गलत है या बेमानी है लेकिन हाँ इतना कहने में भी संकोच नहीं किया जा सकता कि सरकार ये सभी फैसले हड़बड़ी में ले रही है वरना यदि वो वाकई इस 'ट्रेफिक जेम' कि समस्या से निजात पाना चाहती है तो इसके और भी कई सस्ते और टिकाऊ उपाय है कम से कम जितना पैसा कोरिडोर बनाने में सरकार खर्च करेगी उससे कम में इस समस्या से निजात पाई जा सकती है पिछले सालो में अपने काफी गलत फैसलों के बावजूद भी अगर ये सरकार दोबारा जनता का विश्वास जीतने में सफल रही तो इसमें उसके गलत फैसलों के साथ साथ कई सही फैसले भी शामिल थे इनमे से एक तो यही कि इस सरकार ने दिल्ली को सस्ते में ए।सी बसों कि सेवा मुहैया करवाई मुझे लगता है कि दिल्ली सरकार का जोर कोरिडोर बनाने कि जगह यदि ट्रेफिक को कम करने पर, दिल्ली में आये दिन बढ़ रहे निजी वाहनों कि संख्या में कमी करने पर यदि ज़्यादा हो तो इस तरह के विवादित कोरिडोर कि ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी संभवत इसी के लिए सरकार ने पहले कारपूल काम्पेग्न चलाया था जो पूरी तरह असफल रहा ज़ाहिरन तौर पर हर आदमी निजी वाहन चाहता है हालांकि उसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि इससे क्या समस्या पैदा होती है या उसे क्या नुक्सान होता है।
जबसे मेट्रो शुरू हुई है तबसे एक बात और साफ़ हुई है कि यहाँ ऐसे लोगो कि कमी भी नहीं है जिनका मानना है कि यदि उन्हें पब्लिक ट्रासपोर्ट में सहूलियत मिले तो वो अपनी कारें पार्किंग में खड़ी करने में बिलकुल भी नहीं सकुचाएंगे। इससे तो इस समस्या का एक ही हल हमारी नज़रों में दीखता है कि जितना पैसा सरकार बी.आर.टी पर लगाने को तैयार है उसमे से कुछ हिस्सा सिर्फ मेट्रो जैसे प्रोजेक्ट या फ़िर ए.सी बसिज़ पर अगर लगाये और दिल्ली वासियों को सुविधा दे तो वो खुद ही अपनी-अपनी कारें अपने घर पर छोड़ कर आये लेकिन शर्त यही कि सहूलियत पूरी तरह मिले जिस तरह से मेट्रो ने अमीर और गरीब को कार और बसों से निकाल एक लाइन में खडा कर दिया है. लड़कियों को बाहर निकलने कि आज़ादी या सुविधा दी है ट्रेफिक पर बोझ कम किया है उसके बरक्स बी.आर.टी तो इसका हल किसी भी हिसाब से हमें नहीं लगता और शास्त्री पार्क और करावल नगर के बीच तो बिलकुल नहीं जिन्हें २ या ३ पुस्ते जोड़ते है वहाँ आप किस हिसाब से कोरिडोर बनवायेंगे। समझ से परे है ......

1 टिप्पणी:

प्रतिमा ने कहा…

tumne theek kaha tarun,lekin sirf sahooliyat se kya kaam chal paayega?