यूं तो डी.टी.सी के किराये में वृद्धि के मामले में मै कुछ लिखना नहीं चाह रहा था क्योंकि कल रात से यही सब तो पङतासुनता आ रहा हूँ सुबह जब अखबार खोला तो उसमे भी............वही सब
खैर जब फैकल्टी पहुंचा तो देखा कुछ स्टुडेंट शीला दीक्षित का पुतला बना रहे थे और शायद कैम्पस में जलाने की रिहर्सल कर रहे थे मन में कई सवाल उठे ये मुक्तिबोधी क्रांति आज कहाँ तक सही है या ये भी बिना किसी पूछताछ के आधी जिंदगी गफलत में और आधी शैया पर खांसते दम तोड़ते बिताएगी. ये सब क्या है?
कैम्पस में पहुँचने से पहले बस में भी इसी तरह की क्रांतिधर्मिता की बातें चल रही थी ये वही लोग थे जिन्हें अक्सर मैंने बिना टिकट के यात्रा करते देखा है खैर मै वही सब बातें दोहरा रहा हूँ जो आप भी कल से पढ़ते-देखते बोर हो गए होंगे( हलाँकि क्रांतिधर्मिता वाली बात पर आपका ऑब्जेक्ट करना स्वाभाविक है)
दरअसल मुद्दा-ए-बहस ये है कि दिल्ली सरकार ने परिवहन में सालों से होते आ रहे आपने घाटों की एवेज में दिल्ली के यात्रीगणों पर कुछ किराया ठोका है इतना ही नहीं हम स्टूडेंट्स के बस पास को भी साढ़े बारह रूपए से बढा कर १०० रूपए कर दिया गया है पहले ५ महीने के हम ७५ रूपए देते थे अब हमें ५०० रूपए देने होंगे हालांकि अगर मै सरकार की नज़र से और दिन ब दिन बढती महगाई की नज़र से देखू और अन्य राज्यों के किराये से तुलना करू तो मुझे शायद कोई दिक्कत न हो लेकिन जब मै ७५ से सीधा ५०० और ७ का १० और १० का १५ होते देखता हूँ या फिर उन लोगो के बारे में सोचता हूँ जो हमेशा किराया लेकर ही सफ़र करते है तो थोडा दुखी हो जाता हूँ लेकिन तब भी कहूँगा कि बाकी काम करने की जगह अगर हम ये सोचे की ऐसी नोबत आई क्यों?..................जब हम ये सोचते है तो हमें ९५ फीसदी गलतीसरकार की दिखती है..........
क्यों?............... का जवाब तो यही है कि हम सब जानते है कि स्टुडेंट के पास का ये चार्ज जो हम अब तक अदा करते आ रहे थे ४० से भी ज्यादा साल पुराना है क्या सरकार कि यह नीति नहीं होनी चाहिए थी कि वो थोडा थोडा करके साल दर साल इसे बढाती ताकि हम भी खुश होते और सरकार तो ज़ाहिर है खुश...........खैर सरकार ने ऐसा नहीं किया और किराया बढाने का ये फैसला भी ३-४ राज्यों में चुनाव हो जाने के बाद लिया गया ज़ाहिर है पॉलिटिक्स की भूमिका और अगले साल होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों की हड़बड़ी में ये सब फैसले लिए गए है इससे हमें कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए ये तो होना ही था खैर ये तो रही स्टुडेंट के पास की बात अब हम किराये पर आते है मैंने पहले भी कहा जो लोग बिना टिकट के सफ़र करते है उनके लिए आप चाहे किराया १० ले १५ ले या फिर ५० कर दें उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी दिक्कत उन्हें ही होगी जो ईमानदारी से सफ़र करने में विश्वास रखते है और वही लोग किराया वृद्धि का विरोध भी कर रहे है इसमें हमारी आइसा के कुछ भाई लोग भी है ज़ाहिर है इनमे निम्न-मध्य वर्ग के लोग सबसे ज्यादा है तो क्या ये समझा जाये की दिल्ली सरकार नहीं चाहती की वे ईमानदार बने रहे सरकार को ये पता होना चाहिए कि यही वे लोग है जो पर्सनल की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र करते है अगर सरकार ने अपने इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया तो बड़े दुःख की बात है की उन्हें अपने अपने पर्सनल वेहिकल सडको पर उतारने पड़ेंगे जिसकी एवेज में सरकार को न जाने कितने बी.आर.टी. और फ्लाई ओवर बनवाने पड़ सकते है जिसमे वो पहले ही करोडो रूपए लगा चुकी है उसे इस बारे में दोबारा सोचना चाहिए अगर वो अपने फैसले पर अटल रही तो मुझे लगता है की वो उन लोगो के साथ ही खिलवाड़ करेगी जो इस सरकार के साथ ईमानदार है टैक्स देते है और शीला दीक्षित सरकार में अपना विश्वास दिखाते है उसे हैट्रिक बनाने में मदद करते है उसे अपने इन नागरिको के बारे में ज़रूर सोचना होगा और हाँ कम से कम अपने घाटों का ठीकरा तो उनके सर पे फोड़ना सरकार को बिलकुल भी शोभा नहीं देता अगर उसे तब भी लगता है की घाटों को पूरा करने के लिए किराया बढ़ाना ही पड़ेगा तो एकदम न बढाकर साल-दर-साल कुछ-कुछ बढा देना चाहिए जैसे पहले २ रूपए वाली टिकट को बढा कर ३ रूपए कर दिया गया था जिसे लोगों ने कोई खास तवज्जो नहीं दी थी बहरहाल ............बात सिर्फ इतनी है कि सरकार को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और एकदम से किराया बढाने की अपनी नीति को छोड़ देना चाहिए नहीं तो अभी ज्यादा दिन नहीं बीते प्याज ने एक सरकार को इस हद तक बर्बाद कर दिया कि आज तक भी दिल्ली में वो अपनी जड़े दोबारा ज़माने में संघर्ष करती दीखती है उम्मीद है शीला सरकार इस मामले में सचेत होगी .वर्ना हम स्टूडेंट्स का क्या है वैसे भी यूनिवर्सिटी में डूसू- दूसा की हड़ताल से पढाई ठप्प ही रहती है हम समझ लेंगे की कुछ दिन दिल्ली सरकार के लिए सही ............ पर सच कहें हम स्टूडेंट्स अपना ध्यान पोस्टर-बाज़ी और पुतले बनाने या फूँकने में नहीं लगाना चाहते हम पढना चाहते है इसलिए मेरी दुबारा गुजारिश है कि सरकार इस बारे में सोचे .......... आशा है वो ज़रूर सोचेगी और सोचना ये नहीं कि ५ बढा कर एक कम कर दिया ..........हम सरकार से इस ओर सकारात्मक रुख कि उम्मीद लगाये हुए है
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