रविवार, 1 जुलाई 2012

फिर उसकी कहानी कौन कहेगा?

उस दिन कुछ भी ऐसा नहीं था जो उसे लगा हो कि दिवाली आने वाली है वो बस अपने गुरु कुशवाहा जी द्वारा क्लास में कहे गये वाक्यों को याद रखे था। कि इस देश का संविधान हर एक को अपनी बात रखने की, पसंद-नापसंद की इजाज़त देता है। वह बहुत प्रेरित हुआ था उस दिन, उसने अपनी किताब का चैप्टर मौलिक अधिकार पूरा पढ़ डाला था उस दिन।
उन बाज़ारों में जहाँ लोग लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ और हीरो-हिरोइन के पोस्टरों को खोजते फिर रहे थे वह हर पोस्टर और तस्वीरों की दुकान पर जाता पर उसे उसका हीरो नहीं मिलता। फिर थोड़ी दूर किनारे पर उसे वो पोस्टर दिखाई दिया जिसकी उसे तलाश थी।
उसके पड़ोसी जिन्हें वो चाचा कहता था उसका इंतज़ार कर रहे थे कि कब वो लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ लाए। वो लौटा एक हाथ में लक्ष्मी-गणेश और दूसरे हाथ में अपने हीरो का पोस्टर लिए। उसने चाचा के हाथ में मूर्तियाँ पकड़ाईं और घर की तरफ मुड़ा ही था कि चाचा ने टोका अरे, रुक. ये क्या लाया है हमें भी तो दिखा।
चाचा वो कुशवाहा जी बहुत तारीफ करते हैं इनकी, कहते हैं कि इन जैसे लोग शताब्दियों में पैदा होते हैं पर दिखा तो चाचा ने कहते हुए उसके हाथ से पोस्टर झपट लिया। रबड़ उतारी और देखा। देखा क्या देखते ही आग बबूला हो गये। ये क्या , तेरी बुद्धि क्या घास चरने गयी है। भाईसाहब देखेंगे तो चिल्लाएंगे। बनियों-बामनों के घर में इसकी तस्वीर नहीं लगाते।
पर कुशवाहा जी तो...(उसने सहमी आवाज में कहा) गोली मार अपने कुशवाहा जी को..ये मास्टर तुम्हें कैसी शिक्षा दे रहा है। जानता नहीं कि ये शैडूलो का भगवान है। घर में इसे लगाया तो क्या सोचेंगे बिरादरी वाले। चाचा पर मोहन भी तो शाहरुख खान और सलमान खान की तस्वीरें लाया है लगाने को। तो क्या आप मुसलमान हो गये।.. पर वो उसके पसंदीदा हीरों हैं।.. ला दे इधर चर्ररर् फर्रररर. ..
चाचा पर ..पर फाड़ा क्यों? कुशवाहा जी कहते हैं कि इनकी वजह से ही देश के बहुत बड़े तबके को उसके अधिकार मिलें हैं हमारे देश का संविधान इन्होंने ही लिखा है। तेरे कुशवाहा कि खबर मैं लूँगा ये क्या सब सिखाये जा रहा हमारे बालको को.. चाचा मैं बच्चा नहीं हूँ अब. पर आपने फाड़ा क्यो।,,फाड़ा क्यों..? उसने खूद को अकेला पाया। और उस दिन के बाद ये अकेलापन दिन-ब-दिन बढ़ता गया।
तब वो ग्याहरवीं क्लास में था उसका दिल भर आया था उस दिन। तब वह सोच रहा था कि ये कैसी बिरादरी है जो एक मनुष्य को उसके कर्मों के कारण नहीं बल्कि जाति से पहचानती है। उसी क्लास में आर.के.शर्मा (इतिहास के अध्यापक) ने उसे बताया था कि रामायण महाभारत काल में जाति विभाजन कर्म आधारित था उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा था कि जैसे परशुराम ब्राह्मण होते हुए धनुष उठाने के कारण क्षत्रिय बने और वाल्मीकि दलित होने के बावजूद अपने कर्म के आधार पर ही ब्राह्मण।
वो तब भी कन्फ्यूज़ था ये सब क्या है? ये बातें पुरानी थी पर आज इतने सालों बाद अपने दलित दोस्तों के बीच उसे फिर वहीं अकेलापन झेलना पड़ा जो उसे पहले बिरादरी के नाम पर झेलना पड़ा था। एक अंतर्ऱाष्ट्रीय दलित सम्मेलन में घोषणा की गई कि दलितों पर लिखने का हक़ दलितों को ही है। उस उद्घोषणा में उसे उसके चाचा की बानगी दिखी उसे लगा फिर उसकी कहानी कौन कहेगा।

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