शनिवार, 7 नवंबर 2009

समाजवादी बिरादरी की चिंता और बढ़ गई है..

सचिन के पौने दो सौ रन बनाने के बाद भी जीतती हुई इंडिया हार जाएगी, सोचा न था। और इस दुखद खबर के बाद रविवार को जनसत्ता के कॉलम से सुकून मिलने की जो उम्मीद थी वो भी यूँ चली जाएगी ये तो बिल्कुल ना सोचा था। यूँ तो सचिन अपना मिथ खुद गढ़ते है और खुद ही कुछ समय बाद उसे तोड़ देते है लेकिन इस मिथ को गढ़ने में जिन लोगों ने भूमिका निभाई उसमें सबसे अहम रोल प्रभाष जोशी ने अदा किया संभवत् इसलिये हमें हार की चोट पर जोशी जी के रविवार को जनसत्ता में आने वाले लेख की उम्मीद थी वो हमारे लिये इस चोट से उबरने का मरहम था क्योंकि वो अक्सर सचिन की ऐसी पारियों पर लेख लिखा करते थे खुद सचिन को भी उनके आकस्मिक देहांत से गहरा दुख हुआ है चूंकि उनकी टिप्पणियाँ सचिन की हौसला अफज़ाई करतीं थीं। जोशी जी के जाने से न केवल सचिन की अपितु उस पूरी समाजवादी बिरादरी की चिंता और बढ़ गई है जिसकी कप्तानी में उसने अपने आप को अब तक जिलाये रखा था।


समाजवादी राजनीति का जो हश्र हुआ वो हमसे छिपा नहीं है और चिंतन तो लोहिया के बाद लगभग समाप्तप्रा हैं। पञकारिता में प्रभाष जोशी, राजकिशोर, कुलदीप नैयर सरीखे लोगों ने इसे अब तक क़ायम रखा है, इस तिगड़ी में से एक हमें छोड़ चली हैं समाजवादियों में ये स्तब्धता हमें लोहिया के जाने के बाद अब देखने को मिली है उन्हें चिंता हो चली हैं अपनी...........अपने चिंतन की, अपनी विचारधारा की। जो होनी भी चाहिये। लेकिन हमें लगता है कि चिंता से ज़्यादा हमें इस बात की फिक्र करने की ज़रूरत है कि जो लीक हंमें गणेशशंकर विद्यार्थी, राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी ने दी है, हमें उस पर सिर्फ़ चलना हैं या उनकी लीक पर एक नींव बना उस पर पञकारिता की एक ऐसी मिसाल क़ायम करनी हैं जो उन चैनलों की तथाकथित घोषणाओं से अलग हो जो सबसे तेज, सबसे पहले, सच की तह तक, जैसी बातें करते हैं और जिनकी सोच न्यूज़ चैनलों की टी.आर.पी के खेल तक टिकी होती है।


खैर ये इन बातों का वक़्त नहीं है। वक़्त हैं कि हमारी पञकार बिरादरी (प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक) प्रभाष जोशी की सांप्रदायिकता विरोधी पञकारिता के सपने को आगे ले जाए ताकि सांप्रदायिक ताक़तें- सांप्रदायिक राजनीति और उसके ठेकेदार इस पेशे में अपनी पैठ न बना पाए हमारी सारी कोशिश इसीके लिए होनी चाहिये यही उन्हें हमारी ओर से दी गई सच्ची श्रद्धांजली होगी।

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