सर्दी शुरू हो रही है
लोगों की बाहें बंधने लगीं है
बाहें घर जाकर खुल जाती है
वहां गर्मी है या कहूं
उसका एहसास है
लेकिन वहां घर नहीं है
बल्कि उसकी आस है
बाहों के खुलने से रिश्ते टूट जाते है
घरवाले घर के बाहर खुश है
घर आकर रूठ जाते है
अब वो घर नहीं
जहां सर्दी जगह बना ले
यहाँ मकानों की बुलंदी
आदमी की तरह
गर्मी को भी पैदा करती है
इसलिए लोगों की बंधी बाहें
घर जाके खुल जाती है
तुम्हारे बारे में क्या कहूं मै, मेरी तमन्नाओं का सिला है. नहीं मिला जो तो मुझको क्या है, मिलेगा तुमको ये आसरा है.
रविवार, 22 नवंबर 2009
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1 टिप्पणी:
प्रयास अच्छा है जारी रखिये शुभकामनायें
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