शनिवार, 7 नवंबर 2009

दुनिया है एक बुढ़िया का यहाँ से वहाँ जाना.....

१७सितंबर,१९६३

दुनिया है एक बुढ़िया का यहाँ से वहाँ जाना.....

नाखून काटना और ठिठककर खड़े रहना कि पॉकेट से रूमाल पर रूमाल निकलने लगेंगे, मुँह से चूज़े निकल-निकलकर फुर्र उड़ने लगेंगे।....

समय जब चुपके से तुम्हारे पास आकर कहे, 'लो, मैं तुम्हारा हूँ', तब समझ लो कि तुम अकेले हो गए।

उम्र का आना महीन बर्फ का गिरना। हरियाली कब छुप गई पता ही न चला।

मलयज की डायरी-२, (संपा-नामवर सिंह) से उद्धृत

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