आज भी मै वहीं बैठा हूँ
जहाँ उस दिन बैठा हुआ था ।
तुम्हारे पास लेकिन तुमसे दूर
वहीं
जहाँ आज भी तुम्हारी देह या उसी जैसा कुछ
रखा हुआ है इसी खाली कुर्सी पर
जिसकी आत्मा पर लोगो ने नोवेल लिख डाले
और मै कुछ न लिख सका ।
क्योंकि तुम मेरे दिल में थी दिमाग में नही,
जबकि लेखन तो दिमाग की उपज बन चुका है न आज ।
उसी कुर्सी पर
आज मै एक अजीब सी बदहवासी
एक अजीब सी खामशी देख रहा हूँ
मेरे दोस्त कहते है मेरा दिमाग चल गया है
क्या अजीब अजीब चीजे (न दिखने वाली) देखता है?
हाँ, उनके लिए ये फीलिंग चीजे ही तो है ,
लेकिन मेरे लिए ये न ख़त्म होने वाला इंतज़ार है ।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर!
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