शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

वो बचपन बहुत बहादुर था

अभी मैं अपनी ज़िन्दगी के सत्ताईसवें वर्ष में हूँ पर जीवन में बचपन रह रहके लौटता है हमारी जवानी हमारा बुढ़ापा बार बार बचपन की तरफ लौटता है।

मैं तुम्हें अपने बचपन का एक संस्मरण सुनाता हूँ। मेरे घर के पास ही एक पीपल का पेड़ है उसी के बराबर में एक और पेड़ हुआ करता था जो हमारे बचपन ने लटक लटक कर तोड़ दिया, जिससे बाला की अम्मा ने हमारे बचपन को बाँधने की कोशिश की थी। पर बचपन कहाँ बँधने वाला है वो तो जेठ की दोपहरियों में जब सभी बच्चों की माएँ अपने अपने घरों में सो रहीं होती थीं तब हम नहर पर जाने या इस पीपल पर चढ़ने को तिलमिला रहे होते थे।
ऐसे ना जाने कितने किस्से मुझे याद हैं। एक किस्सा वो जब मेरा भाई भैंस की पीठ पर बैठा था और एक दम से भैंस खड़ी हो गयी थी गूमड़ा निकल आया था सिर में। इस डर से कि माँ मारेगी ‘गुल्ली लग गयी है’ कह दिया था उसने।

मेरा भाई मुझसे ज़्यादा शरारती था। मेरे घर के छज्जे के बिल्कुल नीचे एक टांड हुआ करती थी जिस पर हम अपने कंचे, लट्टू और गुल्ली-डंडा जैसे साज़ो सामान रखा करते थे। हम सभी भाई-बहन पापा से बहुत डरते थे। पार्क में जाने के लिए पापा के काम पर जाने का इंतज़ार करने में ही हमारा वक़्त बीतता था। पापा के जाते ही हमारा सारा साज़ो-सामान निकल आता।

हुआ यों कि एक बार भाई नक्के-दुए(खड़क्कास) में कुछ ज़्यादा ही कंचे हार गया था कंचे लेने बो टांड पर चढ़ना चाहता था। शाम का वक्त था पापा के आने का वक़्त हो रहा था। उसने खाट लगाई और उसके सहारे टांड पर चढ़ गया। मैं उससे चिढ़ता था इसलिए मैंने खाट बिछा दी ताकि वो उतर ना सके। इतने में ही पापा आते दिखे। मैं खुश था कि भैया की पिटाई होगी उसका सारा ख़ज़ाना नीलाम हो जाएगा। पर हर बार की तरह भाई ने मुझे इस जुगत मे भी मात दे दी। जब उसने देखा कि उतरने का कोई और जुगाड़ नहीं है तो उसने ‘जय हनुमान जी की’ कहके छलाँग लगा दी। खाट चारो खाने चित्त हो गयी उसके चारों पाए टूट गये और उसकी बान(रस्सी) ज़मीन से आ लगी। भाई को चोटें भी आई। कोहनी और घुटनों से खून भी निकला, पर वो बचपन कुछ ऐसा था कि जैसे बहादुरी और जुनून कूट कूट कर भरा गया हो हममे। पर असल बात ये है कि घर में चोट दिखाने या उससे डॉक्टर से ठीक कराने का रिवाज़ ही नहीं था। छोटी मोटी चोटों का इलाज तो हम मिट्टी, थूक या बीड़ी के बंडल के क़ाग़ज़ को लगाकर कर लिया करते थे। वो बचपन बहुत बहादुर था ।

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