रविवार, 17 जून 2012

ताई


पिता जब भी हमारा संडे मनाते माँ की हिम्मत नहीं होती कि वो बीच में आ हमें बचा लें। हिम्मत न होने पर भी वो निरुपा राव की तरह बीच में आती और पिता उन पर भी दो चार रसीद कर देते। हमारे समाज में पत्नी पर और बच्चों पर हाथ न उठाने वाला मर्द दरअसल मर्द ही नहीं समझा जाता। पिता के भीतर यह सोच बुआ और दूर के रिश्ते की दादीनुमा बूढ़ी औरत ने भरी। पिता में यह बात वह बार-बार भरती कि कहीं पिता जोरु के गुलाम न बन जाए। हमारे समाज में पत्नी से प्यार करने वाला और उसकी बातों में सहमति रखने वाले मर्द को जोरु का गुलाम या औरत के पेटिकोट में घुसने वाला मर्द समझा जाता है। खैर हम जब पिटते तो माँ हमें बचाने आती और खुद भी उस प्रतिभाग को पाती। ऐसे में हमारी सामने वाली पड़ोसन जिसे हम सब ताई कहते थे वहीं एक थी जिसकी शरण में हम सारे भाई बहन खुद को महफूज़ पाते। पिता ताई के सामने नहीं बोल पाते थे उनका कहना था कि वे उनका बहुत आदर करते है इसलिए उनके सामने उनका हाथ नहीं उठता था मैं आज तक ऐसी सोच को नहीं समझ सका हूँ।
ताई की डैथ मेरी माँ के मरने के एक महीने के भीतर ही हो गयी थी। वो बाथरूम में नहाते वक्त मृत पायी गयी थी मेरी ताई की लड़की ने मुझे आवाज़ दी थी मैं ही अपनी गोद में उनके निरवस्त्र शरीर को बाथरूम से उठाकर कमरे में लाया था सविता पास खड़ी रो रही थी और मैं ताई की आँखों के नीचे एक लंबी धार के दाग को देख रहा 
था उनकी आँखे पूरी तरह बंद नहीं थीं थोड़ी खुली हुई थी जिसकी वजह से मुझे उनके शरीर में जान होने का भ्रम बार बार हो रहा था। मैं पहला शख्स था जो बाथरूम में उनके दीवार से पीठ टिकाए बैठे शरीर को उठा कर लाया था वह इमेज काफी लंबे समय तक मेरे जहन में ताई के मरने के बाद भी जिंदा रही। ताई ने एक मग पानी भी अपने शरीर पर नहीं ड़ाला था। उनका शरीर बिल्कुल सूखा था सविता का कहना था कि ताई आधे घंटे से बाथरूम में ही थीं। कहते हैं उन्हें हर्ट अटैक आया था। सविता ने मुझे बताया था कि कोई बात तो थी नहीं बस पापा(ताऊ) से कहा-सुनी हुई थी और उन्होंने ने थोड़ा पीटा था बस उसके बाद (मम्मी)ताई नहाने चली गई पर सविता का कहना था कि ऐसा पहली बार था कि पापा के मारने पर भी मम्मी रोई नहीं थी और सीधा बाथरूम में नहाने चली गई थी। लोगो का कहना है कि ताई हमारे यहाँ की सबसे भली महिला थी अभी पच्चीस दिन पहले मेरी माँ की डैथ पर लोगों ने ऐसा ही कहा था। लेकिन मुझे लगा कि मरने और कहने के बीच में बहुत कुछ अनकहा रह गया।

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