रविवार, 6 दिसंबर 2009

मेरे घोचूँ मेरे भैया

मेरे घोचूँ मेरे भैया
क्या क्या लाऊँ
ता-था थैया
पोलीथीन पे बैन लगा है
जूट का बैग भी नहीं मिला है
मेरे घोचूँ मेरे भैया ।
कैसे लाऊँ ता-था थैया।।

बाज़ारों में भीड़ बड़ी है
सब्ज़ी लेकिन सड़ी पड़ी है
मेरे घोचूँ मेरे भैया।
कैसे खाऊँ ता-था थैया।।

त्योहारों में महँगाई है
या महँगाई में त्योहार
सीलींग के भी क्या कहने है
ठप्प पड़ गया अब व्यापार
भावनाओं की कद्र नहीं अब
अब प्रोफेशन है व्यवहार
मेरे घोचूँ मेरे भैया।
किसे सुनाऊँ ता-था थैया।।

लेकिन अब भी कुछ तो बचा है
जो अब तक बेचा नहीं गया है
ऐसा सब कहते है भैया
लेकिन मुझको नहीं पता है
कैसे इसका पता लगाऊँ
मेरे घोचूँ मेरे भैया
सब हैं मस्त
तो काहे का ता-था।
औ काहे की थैया।।


(यह बाल-कविता कुछ समय पहले लिखी गई थी आज जब काफी दिनों बाद अपनी डायरी खोली तो दिख गई सोचा आपके सामने रख दूँ , सो रख दी। ......... )
आपकी टिप्पणियों के इंतज़ार में..........

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन बाल कविता!!

amitesh ने कहा…

अच्छी कविता है, आपकी डायरियों के और पृष्ठ कहाँ हैं उन्हें भी चिपकाइए