बुधवार, 5 नवंबर 2008

लत

एक युग था राम का
एक युग था कृष्ण का
एक रावण-कंस का
और
एक युग है हमारा
यहाँ सब है सबके पास
पर
नहीं है कोई
किसी के साथ
इसलिए
ये युग तो सबका है
पर
इस युग का कोई नहीं
यहाँ
ये कहना , कि वो मेरे साथ है
स्वयं को धोखा देना है
और
हम अब भी सबको अपने साथ मानते हैं
हमें शराब की,
सिगरेट की,
लड़की की लत नहीं
क्योंकि
हमें धोखा खाने की लत लग गई है ।

2 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

kitna schcha or achcha likha hai...
badhaaee

बेनामी ने कहा…

भावपूर्ण कविता। बधाई।