राज बाबू पिछले दिनों जो हंगामा तुमने बरपाया वो किसी से छिपा नहीं है । इस पर तुम कितना ही राष्ट्रवाद का झंडा ऊँचा करने की कोशिश करो , पर यह कैसी राष्ट्रीयता है जो अन्य. क्षेञ की भावनाओं को नकार कर पनपी है । क्या तुम जिनकी दुहाई देते हो उन महापुऱुषों ( शिवाजी , तिलक , संत नामदेव , ग्यानेश्वर आदि ) की भी इज़्ज़त करना भूल गए हो । भूल गए उनका संदेश । भूल गए किस तरह शिवाजी ने ओरंगजेब( जो कि अन्य लोगो कि सिर्फ मराठियो की नहीं भावनाओं को आहत कर रहा था ) के खिलाफ मोर्चो खोला था जिसमें एक उत्तरभारतीय (हाँ ये नाम तुम्हींने गढ़ा है वरना अब तक तो सभी के लिए भारतीय ही प्रचलित है ) छञसाल बुंदेला ने उनका साथ दिया था । जिससे शिवाजी और छञसाल की वीरता को पूरे भारतवर्ष ने सराहा था । क्या तुम्हे कवि भूषण याद हैं जिन्होने इनकी वीरता के किस्सों को जन-जन तक पहुँचाया था क्या उन पर भी तुम मराठी होने का ठप्पा लगा सकते हो। क्या तुम इतिहास को लात मार देना चाहते हो । तुम तो शक़्ल से पढ़े-लिखे जान पड़ते हो क्या तुम्हे इतिहास की वो घटना याद है जब तिलक ने सभी भारतीयो से अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया था तब सभी भारतीयो ने उनके सुर मे सुर मिलाते हुए एकजुटता दिखाई थी । किसी ने बंगाली , बिहारी या किसी अन्य प्रदेश का स्वयं को नहीं समझा था सभी जानते थे कि सबकी पीड़ा एक है इसलिए समाधान भी एक ही होगा । उन्हे लोकमान्य का की पदवी सिर्फ मराठियो ने ही नही दी । क्या तुम यह भी भूल गए कि मराठी संतो की वाणी सब के साथ रहने का संदेश देती है । अगर तुम सब कुछ भूल गए तो तुम्हे ये याद रखने की भी कोई ज़रूरत नही कि तुमने एक इंसान के रूप में जन्म लिया है क्योंकि तुम इस फेहरिस्त में अकेले नही हो तु्म्हारा साथ देने के लिए हिटलर और मुसोलिनी खड़े हैं । उनका जन्म भी मनुष्य के ऱूप मे हुआ था लेकिन अपने कामो से और अंधी राष्ट्रीयता की भावना ने उन्हें भी मनुष्येतर बना दिया । क्या तुम ये चाहते हो कि इतिहास तुम्हें इसी तरह याद करे क्योंकि तुम तो हिटलर और मुसोलिनी भी नहीं हो उन्होंने तो फिर भी एक पूरे राष्ट्र के बारे में सोचा था और वर्साय की तरह की न जाने कितनी अपमानजनक संधियों का बदला लिया था अपने राष्ट्र के लिए उन्होंने स्वयं की भी बली दे दी थी। वे मारना जानते थे तो मरना भी जानते थे लेकिन तुम्हें तो एक क्षेञ के अलावा कुछ और दिखाई ही नही देता , क्या तुम मरना जानते हो ? तुम ये शायद स्वीकार नही करोगे कि तुम्हारी पार्टी (मनसे) शिवसेना की तर्ज पर अपने अस्तित्व को गढ़ने की आकांशा रखती है । मत करो लेकिन क्या तुम उत्तरभारतीयों के गुस्से का दंश झेल सकते हो जोकि अपना गुस्सा तुम्हारी तरह कुछ करके नहीं बल्कि कुछ ना करके ज़ाहिर करते हैं । तुमने कभी सोचा है कि अगर इन्होंने कुछ करना बंद कर दिया तो तुम्हारी (जिसे तुम सिर्फ अपना मानते हो ) औद्योगिक नगरी-मायानगरी का क्या होगा । जानता हूँ तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं क्योंकि तुम भी अपने पिता के ही नक्शे-क़दम पर चल कर महाराष्ट्र में अपना राजनीतिक मुक़ाम हासिल करना चाहते हो । ऐसे मुकाम को हासिल करने की इच्छा रखना कोई ग़लत बात नहीं है लेकिन जो तरीका तुम इस्तेमाल मे ला रहे हो वो बेहद शर्मनाक है । बाहर के मुल्क इन्हीं चीज़ो का फायदा उठाकर मुम्बई मे बम ब्लास्ट करवाते हैं । क्या तुम भूल गए मुम्बई की लोकल ट्रेन में हुए ब्लास्ट को जिसमे उत्तर भारतीयो के मरने की तादात किसी से कम नही थी , कम से कम ऐसी आशा तो मुझे तुमसे नही है । लेकिन तव भी अगर तुम ये सब भूल गए तो सिर्फ इतना याद रखो कि जब कोई अपना घर-परिवार ( बी.वी बच्चे , माँ-बाप ) सब कुछ छोड़कर अपनी जान हथेली पे लिए मुम्बई में चला आता है तो वो तुम्हें कुछ ना कुछ देकर ही जाएगा । ग्लोबल वार्मिंग के बारे में तो सुना होगा या सुनामी का क़हर तो तुम्हारी आँखों देखा है , कभी सोचा है मुम्बई जिसके समंदर पर तुम्हें इतना गर्व है अगर डूब गया तो शरण के लिए कहाँ भटकोगे ? मेरे स्कूल में एक मास्टरजी थे जब भी मेरी क्लास में दंगल होता या आपस मे लड़ाई हो जाती जोकि रोज़-ब-रोज़ होता ही रहता था तो वे कहा करते थे कि लड़ाई इस तरह करो कि दुआ-सलाम में कोई फर्क ना आने पाए , कल जब तुम मिलो एक दूजे से आँख मिला सको । खैर मै जानता हूँ करोगे तो तुम वही जो तुम्हारी मनसे के लिये फायदेमंद होगा लेकिन तबभी मेरी सलाह पर गौर करना ।भगवान तुम्हे सद् बुद्धि दे ।
8 टिप्पणियां:
अच्छा लिखा भाई.भगवान इसे सदबुद्धि
खरी खरी कही !
ye lambi daud ka ghoda nahee.beemar aadmi hai. bhagvan ise atmavlokan kar lene ka avsar pradan kare
ye lambi daud ka ghoda nahee.beemar aadmi hai. bhagvan ise atmavlokan kar lene ka avsar pradan kare
ye lambi daud ka ghoda nahee.beemar aadmi hai. bhagvan ise atmavlokan kar lene ka avsar pradan kare
राज को न तो देश का इतिहास ज्ञात है और न ही भूगोल !
Tarun vaise to jo kuch lihka sole aane such tha par kahte hai na kutte k dum ko aga 12saal thk b naale mei rahko to b vo vaise he rahe.in logo ko haal b kuch aisa he hai. In logo ko itihaas to yaad hai par os say jude vishayo ko ye yaad nahi karna chate.
achcha likha hai, lekin aajkal ke netaaon se isse jyada apeksha bhi nahi ki ja sakti
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