नहीं नहीं , नहीं-नहीं यहाँ कोई नहीं है
खुशबू फूलों में नहीं , रंगे-मेहफ़िल भी नहीं है ।
क्या हुआ वक़्त जो ठहरा हुआ-सा लगता है
पास में सब हैं मगर, साथ में कोई नहीं है ।
क्या करे इश्क़-ए-मजमूँ जो समझ में ना आया (प्यार का मतलब)
क्यों ना कह दूँ कि मुझे इसका तो इरफ़ा नहीं है । (जानकारी)
और बच जाऊँ अब ये कहके मैं उनकी नज़र से
कि किसी और से है प्यार, पर तुमसे...........
4 टिप्पणियां:
बढ़िया
बहुत ख़ूब...
वाह वाह भाई..क्या बात है...बेहतरीन.
नीरज
वाह!!
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