शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

नई दुनिया की दुनिया

अखबार की दुनिया में नई दुनिया ने २ अक्टूबर को क़दम रखा शुरुआत जितनी शिद्दत से हुई ख़बरों में भी वही शिद्दत अब तक बरकरार है , इसकी खुशी है । पिछले दिनों बाल दिवस के मौके पर नेहरू पर जो रिपोर्ट पेश की गई वो इतनी ज़बरदस्त थी कि इसने कांग्रेस शासन के कार्यकाल में ही नेहरू की उपेक्षा होने के बारे में ना केवल बताया बल्कि इस बात का भी मलाल किया कि जिस अध्ययनशील प्रवृत्ति के नेहरू थे और जिसके लिये सैंक़ड़ों संस्थानों की स्थापना की गई थी वो आज अधर में फँसें हुए हैं । दिल्ली स्थित तीन-मूर्ती भवन की हालत ये है कि यहाँ पिछले ६ महीने से नई किताबें नहीं खरीदी गईं हैं । ये हाल तब है जब सरकार नेहरू विरोधी या कि विपक्ष की नहीं बल्कि कांग्रेस की है । १४ नवंबर नेहरु का जन्मदिन भी है और बाल-दिवस भी । उसी दिन नेहरु की समकालीनता का सवाल उठाया गया जो बिल्कुल वाजिब था । नेहरु ने एक आधुनिक भारत का सपना देखा था और उसे साकार करने की भरसक कोशिश की थी इस बात को मानने में , मुझे नहीं लगता कि किसी को किसी तरह की कोई दिक्कत होगी । हाँ , बाँधों के मामले में और उन्हें आधुनिक भारत के मंदिर कहने के बारे में ज़रुर विवाद उठा लेकिन उस पर भी एक सकारात्मक और सामूहिक बहस की आवश्कता है जोकि अब तक नहीं हो सकी हैं । जिसका एक बड़ा कारण नेहरू पर बहस करने वालों का नेहरू को ना पढ़ना मालूम होता है जिन लोगों ने ( चाहे वो किसी भी विचारधारा में विश्वास रखतें हों ) नेहरू को पढ़ा है वो निश्चित ही उनके और उनके लेखन के क़ायल हए होंगे ऐसा मेरा विश्वास है । एक आदमी जिस पर देश की , परिवार की , भारत की विश्व में साख बनाने की , अपने आप को अमेरीकी पूँजीवाद और रूसी मार्क्सवाद से बचाते हुए एक तीसरी दुनिया बनाने की ज़िम्मेदारी हो । ताज्जुब होता है ये जानकर की वह इतना अधिक पढ़ने-लिखने के लिए समय कैसे निकालता होगा । लेकिन वर्तमान सरकार जिस पर माञ अपने आप को संभालने भर की जिम्मेदारी भी पूरी तरह नहीं है क्या वो नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकों का संकलन तक तैयार नहीं करा सकती । क्या वह इतनी बिज़ी है ? क्या उसका इतना लंबा-चौड़ा बिज़निस चल रहा है कि उसे अपने ही विचारों को संभालने का वक़्त नहीं मिल पा रहा ? नई दुनिया ने नेहरू के नाम पर चल रहे इन संस्थानों की (जिनकी वेल्यू आज भी अध्येयताओँ के लिए बनी हुई है जो आज भी अनुसंधान के लिए इसे ख़ासी तवज्जो देते हैं ) अच्छी ख़बर ली है। १९ नवंबर को इंदिरा गाँधी के जन्मदिन वाले दिन भी अखबार ने एकबार फिर अपना दायित्व संभाला।इंदिरा गाँधी के बारे भारत में बहुत अच्छी सोच नहीं है मसलन उन्होंने १८ महीने की इमरजेंसी लगाई , लोकतंञ का गला घोंट दिया । उनका शासनकाल अंधेरे का समय (टाइम ऑफ़ डार्कनेस )था । ऐसी सोच अधिकतर बुद्धिजीवियों की रही है । लेकिन भारत का आम आदमी जो उस समय शायद बुद्दिजीवियों के दायरे से बाहर था इस सोच से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता था । मेरी कॉलोनी के अधिकतर लोग इंदिरा का समर्थन करतें हैं । वे कहते हैं ....उस औरत में गजब की सक्रियता थी , फैसले लेने की ग़जब की शक्ति ,जो आज बहुत कम लोगों में (शायद नहीं) बची है । मैंने एक बार इसकी पड़ताल करने की कोशिश की थी जिसके लिए मैं अपने पापा के पास पहुँचा था । जब मैंने जानने की कोशिश की थी कि १८ महीने इमरजेंसी और लोकतंञ का गला घोटने वाली इस महिला को कॉलोनी वाले इतना क्यों पसंद करते हैं । इस बारे में बताने के क्रम में ........पापा जैसे ८० के दौर में ही चले गए थे जब वे दंगे मे मरते-मरते बचे थे । तुमने बर्फखाना देखा है ना ,वहाँ कभी सब्जीमंडी हुआ करती थी । यतायात में बहुत दिक्कत आती थी । जब भी उस मंडी को हटाने का फरमान आता , वहाँ के आढ़ती पैसों का बंडल पहुँचा आते सरकारी कर्मचारियों के यहाँ और फर्मान क़ाग़ज़ के टुकड़े में तबदील हो जाता । लेकिन इंदिरा ने ( वो ऐसे बात कर रहे थे जैसे इंदिरा उनके घर की ही किसी महिला का नाम हो ) एक ही रात में वहाँ से सब साफ कर दिया । आज वह जगह आज़ाद मार्किट के पास पुरानी सब्ज़ीमंडी के नाम से जानी जाती है .। लेकिन इससे अपनी कॉलोनी वालों का क्या लेना देना ..मैंने पूछा । सन् ७६ की बात है हम लोग अम्बा बाग़ मे एक झुग्गी में रहते थे । जहाँ आज हिन्दी अकादमी है (पदम नगर )उसके पास ही हमारी झुग्गी हुआ करती थी । उसे तोड़ने का भी फरमान जारी हुआ था लेकिन इंदिरा की आवास योजना ने हमें बेघर नही होने दिया । उन्होंने पुनर्वास कॉलोनी के नाम से नंद-नगरी , मंगोलपुरी , सीमापुरी, जहाँगीर पुरी जैसी न जाने कितनी ही रिसेटेलमेंट कॉलोनियों के ऱूप में लोगों को बसाया । आज हम जिस घर में है ये सब उसी की बदौलत है । मैं अख़बार पढ़ता जा रहा था और मेरे सामने वो सब फ्लैश-बैक की तरह खुलता जा रहा था । नई दुनिया ने यादे ताज़ा की इसके लिए उसका शुक्रिया।

1 टिप्पणी:

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

Nehru sahi mayane me yugdrashta the. jo bhee akhbaar yaa uska sampadak Bharat ke bare men aagen badhkar sochega wah Nehru se jaroor ru-B-ru hoga.
aapka lekh sahi aur jankareeparak hai.
achha post, swastha post. good luck.